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संवाद



मिलना जुलना बात करना, संवाद करना,यही जिंदगी का जीने का सही तरीका है।परंतु संवाद विहीन होना इस ज़िंदगी की व्यस्तता का परिणाम तो नहीं है।


सब अपने को बहुत व्यस्त समझते हैं।तो दूसरा सोचता है कि क्या में ही फालतू हूँ।अगर किसी से बात भी करते हैं तो आँखें घड़ी पर ही रहती है।


कहीं हम अपना कीमती वक्त तो इन पर बर्बाद नहीं कर रहे।क्यों हम इतने मगरूर और मतलबी हो गए कि किसी की बात सुनने को समय की बर्बादी समझने लग गए।सब भाग रहे हैं।अपने लिए पैसों की दौड़ में आगे निकलने के लिए उसकी कीमत में क्या दे रहे हैं?

या क्या ले रहे हैं?

यह तो वह जानना भी नहीं चाहते।


यह बातें,नई पुरानी, आते आते जाते,

कहती है कोई कहानी, यह बातें।


पर अब कहाँ?वह बातेँ, जो कभी खत्म नहीं होती थी।अब वह बातें कहीं सुनाई नहीं देती।


बातें यानि संवाद क्या करें?


जब कहीं जा ही नहीं पाते।पहले कहीं भी बिना कहे चले जाते थे।अब तो कहीं जाना भी मुश्किल होता है।


पहले ऐसा कोई रिवाज़ नहीं था कि पहले खबर करो।फिर मिलने जाओ।


अब तुम मिलने जाओ तो घर वाले ही कहते हैं।

यह कैसे लोग हैं?

बिना बताए आ गए?


कैसे कुछ बनाएं? क्या खिलाए?

समझ नहीं आता। भला बिना बताए क्या कोई यूँ ही चला आता है।


कभी तो इंसान को सोचना चाहिए।कहीं बिना बताए जाने से पहले।


इसी कारण लोगों ने आना-जाना छोड़ दिया।बोलना चालना छोड़ दिया।यही इस वक्त की त्रासदी है।


अब हर व्यक्ति अपनी खुशी, अपने गमों को,अकेला ही सहता रहता है क्योंकि बताने के लिए दूसरे के पास जा नहीं पाता।और वह नहीं जाता तो दूसरा आ नहीं पाता।यह दुनिया का तनाव,डिप्रेशन और एकाकीपनसंवाद का अभाव है।



पहले कोई घर आता था।जो बना होता था।वह भी उसी में से प्यार से खा लेता था।


वह तो हम अपने मुद्दे से भटक रहे हमारा टॉपिक बातें ही हैं।


मिलने से बातें करके हम अपने को फ्रेश महसूस करते हैं।

मिलने जुलने से हम अपना तनाव कम करते हैं। मिलने जुलने दुख सुख में दूसरे को भागीदार बनाते हैं।


हम एक दूसरे के करीब आ जाते हैं।

और शक्तिशाली महसूस करते हैं।

अब हम बात करते हैं। उन बुजुर्गों की जिन से मिलने की किसी को जरूरत नहीं महसूस होती है।पर वह बुजुर्ग क्या करें?


जिनकी बातों में किसी को कोई रुचि नहीं है। क्यों की उनकी बातें किसी को नहीं सुननी।


पहले परिवार में कोई बात हो जाती थी।तभी एक दूसरे से लड़कर,बोल कर,अपना गुबार निकाल देते थे।


परंतु अभी किसी भी परिवार में झगड़ा हो जाए।तो पहला काम तो संवाद करना बंद कर देते हैं।फिर मिलना छोड़ देते हैं।सोच वैसी ही बना लेते हैं।उसने ऐसा किया मुझे उससे कोई मतलब नही है।वह अपने आप को समझता क्या है। उसकी जो मर्जी होगी वह वैसा ही बोलेगा।


फिर अपने को बहुत दूर कर लेते हैं ।

आपस में मिलने के सारे रास्ते बंद कर लेते हैं।


किसी को किसी की बात बुरी लगी तो सबसे पहले क्या करेगा?


बात करना बंद कर देगा।

बात करना बंद करने से क्या होगा ?

पर इससे क्या समस्या खत्म हुई ?

नहीं ।

इससे तो और बढ़ गई।

बात करना बंद,मिलना जुलना बंद ,और खाई बढ़ती जाती है। फिर उस खाई को पाटना और भी मुश्किल हो जाता है।


हर व्यक्ति अपने में मशगूल है।अपने काम में,अपने फोन में,अपना टीवी देखने में,किसी को किसी से मिलने की आवश्यकता ही महसूस नहीं होती।


वह अपने आप में सोचता है। मैं कंफर्टेबल हूँ। और दिन पर दिन यह कंफर्टेबलिटी बढ़ रही है।


अपनी इस दुनिया से बाहर निकलिए।और देखिए।आपके ना मिलने की आदत से,आप अपनों से दूर तो नहीं हो रहे।


ऐसा तो नहीं जो आजकल डिप्रेशन और

एकाकीपन बढ रहा है।ना मिलने जुलने के फल स्वरुप होने वाला परिणाम है।


कहिए सुनिए ,सुनिए कहिए,

कहते सुनते, बातों बातों में,

प्यार हो जाएगा, प्यार हो जाएगा।


ना बोले तुम, ना मैंने कुछ कहा, कहा

मगर न जाने ऐसा क्यों लगा, लगा

कि धूप में खिला है चांद,

दिन में रात हो गई,

यह प्यार की बिना कहे,

सुने ही बात हो गई।


न जाने क्यों?

होता है यूं जिंदगी मैं प्यार,

अचानक ही मन ,किसी के जाने के बाद,

करे फिर उसकी याद,छोटी छोटी सी बात।

न जाने क्यों?

ज़िंदगी में कभी भी संवाद करना मत छोड़िए।

यह मैंने आपको बातों यानि संवादों के फायदे बताए है।संवाद यानि मन की शांति,मन का हल्का होना,मन की कड़वाहट खत्म,

संवाद यानि दूसरों के सुख दुख में शामिल होना।संवाद यानि अपनेपन को महसूस करना भी होता है। है ना कमाल का यह संवाद।


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