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समय की आरज़ू

अपडेट करने की तारीख: 14 फ़र॰ 2022






बहुत आरजू थी समय से,

कभी मिले तो सोचूँ।

कभी मिले तो जिंदगी को समझूँ।

जो कभी मिला ही ना था,

सब से यही कहती थी कि,

अभी मेरे पास वक्त नहीं है।

अभी तो मरने की फुर्सत भी नहीं है।

पर देखो समय ने क्या खेल रचाया,

फुर्सत ही फुर्सत देकर घर बैठाया।

अब कहती हूँ समय ही समय है।

पहले जब कमाने में व्यस्त थे।

अब सेहत बनाने में मस्त हैं।

सेहत के लिए कमाना छोड़ दिया।

व्यस्तता की जो चादर ओढ़ रखी थी।

उसे उतार फेंक समय के साथ मोड़ दिया।

अब घर गुलशन बन गए,बाजार सूने हैं।

घर में सब एक साथ,खुशियों में दूने हैं।

बाहर ना निकलना,घर से दवा बन गई।

घर में रहकर घरवालों की कली खिल गई।

शिकायत थी सबको कि वक्त नहीं देते,

अब समय ही समय है मिल खुश हो लेते।

घर में रहकर आप जिंदगी से मिल सकते हैं।

बच्चों की हंसी,उनका रूठना,

उनका गुस्से में पैर पटकना,रोना,

उनका जरा सा समझाने पर मान जाना।

ज़िद पूरी होती खिलखिलाना,

जिंदगी में आखिरी बार कब महसूस किया था।

या देखा था,असली जिंदगी तो यही है।

हमारे बच्चे भगवान के रूप में,

जो वक्त मिला है,उसे उनके साथ,

गुजारिये,मुश्किल वक्त अपनों के साथ।

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