जिंदगी की सीढ़ी,
कहाँ पर है? जिस पर चढ़े,

शिखर पर पहुंचे, या सोचते रहे।
ना चढ़े , ना पहुंचे,
क्या वह दीवार सीढ़ी वाली?
याद है,या भूल गए, उम्मीदों वाली।
कहाँ रखी, कहाँ छोड़ी सीढ़ी,
यह रख दी, गलत दीवार पर टेढ़ी।
अब ना शिखर है, ना कामयाबी।
गलत दीवार, चुनने में खराबी।
यहां से एक दो सीढ़ी चढ़ पाए,
जहां खड़े थे, वहीं बैठ जाएं।

तब क्या गलती सीढ़ी की होगी?
रुकने पर क्या तरक्की होगी?
देखो कहां रुके, कहां खड़े हो।
सीढ़ी कहाँ है? जहां पड़े हो।
क्या खुश हो दो-तीन सीढ़ी में?
क्या कहेंगे जो होंगे,
अगली पीढ़ी में?
खुश हो तो ठीक है,
नहीं तो पता लगाओ।
अपनी सीढ़ी कहाँ खड़ी है?
इस पर नजर जमाओ।
खुश होने और देखने,
का कर्म कर जाओ।

गलत दीवार से हटाकर,
सही दीवार पर लगाओ।
जहां पहुँचना चाहते हो,
पहुँचकर दिख लाओ।